नोहर के को-ऑपरेटिव बैंक में पदस्थ हैं। सहदेव के सीकर निवासी दामाद महेश कुमार का भी आरएएस परीक्षा 2018 में चयन हुआ है। रोमा कहती हैं, सफलता के लिए किसी कोचिंग की नहीं बल्कि मेहनत, लगन व ईमानदारी से पढ़ाई की जरूरत है।
बाड़मेर: बचपन में भेड़-बकरियां चराते, मेहनत कर बने अफसर

बाड़मेर जिले के बायतु क्षेत्र के कानोड़ गांव निवासी देराजराम डूगेर के पिता भी किसान हैं। गरीब परिवार के देराजराम स्कूल में पैदल पढऩे जाते। बचपन में भेड़-बकरियां चरातते। परिवार चलाने में मदद करने के लिए हम्माली और हॉकर का काम तक किया। लेकिन हौसले के धनी देराजराम सतत मेहनत करते रहे। गांव के पास धोरों के बीच तलहटी में कच्चे मकान में रहने वाले देराजराम बीएसटीसी कर 2011 में पटवारी बने। वर्ष 2012 में तृतीय श्रेणी शिक्षक पद पर चयन हुआ लेकिन जुनून आरएएस बनने का था। वर्ष 2013 और 2016 में साक्षात्कार में विफल रहने के बावजूद संघर्ष जारी रखा और अब आरएएस-2018 में 302 वीं रैंक लाकर मुकाम पर पहुंचे।
जालोर: तीन भाई बने अफसर

जालोर जिले में सांचौर क्षेत्र के करावड़ी गांव निवासी अध्यापक आसुराम सारण को अपना पहला गुरु मानने वाले उनके 3 पुत्र दिनेश, अनिल व विकास अफसर बन गए हैं। अनिल का आरपीएस एवं विकास का आरटीएस में चयन 2016 की भर्ती में हुआ जबकि बड़े भाई दिनेश का चयन इस बार 322 रैंक से हुआ है।
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